क्या मतलब ऐसे चिरकट पौधा रोपण का ?
-पंकज व्यास, रतलाम
एक दिन एक पौधा आकर मुझसे बोला-भई लिख्खाड़ मेरे तो करम ही फूटे हैं। मैंने पूछा- क्यों, क्या हो गया? वो बोला- जिसे देखो वो मुझे रोंपने चला है। मैंने कहा- तेरक तो खुश होना चाहिए, लोग तुझे रोंप रहे हैं, तू ही आगे जाकर वृक्ष बनेगा और पर्यावरण पोषण में सहायक बनेगा। वो बोला- खाक वृक्ष बनेगा। मैं पौधा एक, ...और रोंपने वाले 10-10। सब मिलकर मुझक रोपते हैं, फोटो खिंचवाने के लिए। दस-दस हाथ मेरी मुंडी पकड़ते हैं। पौधा रोपण क पहले ही अनजाने में कचुमर बनाने में कई कसर नहीं छोड़ते हैं। बाद में ध्यान नही देते। अब भला मैं कसे विकस करूंगा और बताओ कसे वृक्ष बनुंगा।
मैंने छुटल्ले पौधे क समझाया-इतना तो सहन करना पड़ेगा यार। अब वो भी पौधा रोंप कर बहुत बड़ा कर रहे हैं कम, उनको भी तो चाहिए नाम। और नेम और फेम के पीछे तो दुनिया भागती है यार...
मेरी बात को बीच में ही काटते हुए वह नादान पौधा बोला बोला- येई तो दुख की बात है। लोग इस चिरकट नेम और फेम के पीछे भागते हैं।केवल एक पौधा रोपते हैं और झांकी बाजी जमाने भर की करते हैं। वो पौधा अपनी आंखे फाड़ते हुए बोलता गया- मेरे साथ दस जने फोटो तो ऐसे खिंचवाते हैं कि मेरा पूरा ध्यान रखेंगे, पर एक जना भी आकर झांक ले वो बड़ी बात...क्या मतलब ऐसे चिरकट से पौधारोपण का ?
मैंने उसको कहा- अरे नन्हे पौधे तू भी कसी बात करता है? छोटे मुंह बड़ी बात करता है। बड़ों पर प्रश्न चिह्न लगाता है... पौधारोपण को चिरकुट पौधरोपण कहता है...।
दोस्तो वो पौधा मेरी बात मानने के लिए तैयार नहीं- वो इस बात को समझने को तैयार ही नहीं की लोग पौधारोपण के लिए पौधारोपण नहीं करते, फोटोखेचन के लिए पौधा रोपण करते हैं, नेम और फेम के लिए करते हैं, लोगों की बाद से मतलब नहीं। वो पौधा तो एक ही जीद कर रहा है कि पौधारोपण के बाद भी उस पर ध्यान दो... अब आपही समझाओ यार उस चिरकुट पौधे को... या फिर खुद समझा जाओ....
-पंकज व्यास, रतलाम
एक दिन एक पौधा आकर मुझसे बोला-भई लिख्खाड़ मेरे तो करम ही फूटे हैं। मैंने पूछा- क्यों, क्या हो गया? वो बोला- जिसे देखो वो मुझे रोंपने चला है। मैंने कहा- तेरक तो खुश होना चाहिए, लोग तुझे रोंप रहे हैं, तू ही आगे जाकर वृक्ष बनेगा और पर्यावरण पोषण में सहायक बनेगा। वो बोला- खाक वृक्ष बनेगा। मैं पौधा एक, ...और रोंपने वाले 10-10। सब मिलकर मुझक रोपते हैं, फोटो खिंचवाने के लिए। दस-दस हाथ मेरी मुंडी पकड़ते हैं। पौधा रोपण क पहले ही अनजाने में कचुमर बनाने में कई कसर नहीं छोड़ते हैं। बाद में ध्यान नही देते। अब भला मैं कसे विकस करूंगा और बताओ कसे वृक्ष बनुंगा।
मैंने छुटल्ले पौधे क समझाया-इतना तो सहन करना पड़ेगा यार। अब वो भी पौधा रोंप कर बहुत बड़ा कर रहे हैं कम, उनको भी तो चाहिए नाम। और नेम और फेम के पीछे तो दुनिया भागती है यार...
मेरी बात को बीच में ही काटते हुए वह नादान पौधा बोला बोला- येई तो दुख की बात है। लोग इस चिरकट नेम और फेम के पीछे भागते हैं।केवल एक पौधा रोपते हैं और झांकी बाजी जमाने भर की करते हैं। वो पौधा अपनी आंखे फाड़ते हुए बोलता गया- मेरे साथ दस जने फोटो तो ऐसे खिंचवाते हैं कि मेरा पूरा ध्यान रखेंगे, पर एक जना भी आकर झांक ले वो बड़ी बात...क्या मतलब ऐसे चिरकट से पौधारोपण का ?
मैंने उसको कहा- अरे नन्हे पौधे तू भी कसी बात करता है? छोटे मुंह बड़ी बात करता है। बड़ों पर प्रश्न चिह्न लगाता है... पौधारोपण को चिरकुट पौधरोपण कहता है...।
दोस्तो वो पौधा मेरी बात मानने के लिए तैयार नहीं- वो इस बात को समझने को तैयार ही नहीं की लोग पौधारोपण के लिए पौधारोपण नहीं करते, फोटोखेचन के लिए पौधा रोपण करते हैं, नेम और फेम के लिए करते हैं, लोगों की बाद से मतलब नहीं। वो पौधा तो एक ही जीद कर रहा है कि पौधारोपण के बाद भी उस पर ध्यान दो... अब आपही समझाओ यार उस चिरकुट पौधे को... या फिर खुद समझा जाओ....
No comments:
Post a Comment