Thursday, October 15, 2009

आओ बधाई दो.....

सबको बताई दे है, आज हमरा जनम दिन है,आओ हमको बधाई दो.....
साथ में कोई गिफ्ट -शिफ्ट दो, तो मजा आ जाये,
अगर आप हमको बधाई दो, तो मन प्रफुल्लित होई जाये,
तो दो ना बधाई,  खिलाओ न मिठाई .....
पंकज व्यास, रतलाम

Saturday, October 3, 2009

ब्लॉगवाणी को कुछ सुझाव

ब्लॉगवाणी को कुछ सुझाव
ब्लॉगवाणी को सुझाव सब दे रहे हैं। मैं मेरे मन-मानस में भी कुछ सुझाव आए हैं।  मैं यह नहीं जानता हूं कि व्यवहारिक रूप से इन पर अमल किया जाना संभव है या नहीं, लेकिन इस अकिंचन के कुछ सुझाव हैं जरूर, उन्हें प्रस्तुत कर रहा हूं।

Sunday, September 27, 2009

दशहरा की आप सबको शुभकामनाएं

दशहरा की आप सबको शुभकामनाएं।
बड़े आगे हर क्षेत्र में, चूमे आसमां
आपकी हर शुभ हो विजय
विजयादशमी पर है ये कामनाएं....

पंकज व्यास, रतलाम

Wednesday, September 23, 2009

अनाम शहीदों का श्राद्घकर्म किया

जब श्रधा कर्म चल रहा था तब किसी ब्लॉग पर मैंने इस आशय की पोस्ट पड़ी थी की क्या शहीदों का श्रद्धा कर्म किया जाता है ? बदनावर से पत्रकार जमील कुरैशी के सोजन्य से पेशा है ये समाचारज्ञात- अज्ञात शहीदों का श्रद्धा कर्म 5 (पाच) सालो से किया जा है। भविष्य में एक रपट भी पेश करूंगा।
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पंकज व्यास रतलाम

मध्य प्रदेश के धार जिले के बदनावर में यहां नागेश्वर मंदिर परिसर में स्थित शहीद गैलरी में भारत के अमर क्रांतिकारियों एवं अनाम शहीदों को याद करते हुए सर्व पितृ मोक्ष अमावस्या पर उनकी आत्म शांति हेतु तर्पण एवं कर्मकांड कर पुष्पांजलि अर्पित की गई।

Monday, September 21, 2009

नवरात्र व् ईद कि शुभ - कामनाएं.....

ईद की कोटि कोटि शुभ कामनाएं....
न हो मन में बेर-भावनाएं....
रहें हम पाक- पावन,
ऐसी हो हम सबकी भावनाएं...

खुदा का नूर हो, नवरात्र का सुरूर हो
न कोई दिल से दूर हो,
ऐसी करें हम माँ की आराधना
कि ही हर ओर माँ की महिमा का गान हो...


नवरात्र व् ईद कि शुभ - कामनाएं.....

Sunday, September 20, 2009

मोबाइल में ईनाम का मैसेज, कहीं पछताना न पड़ जाए

mobile मोबाइल में ईनाम का मैसेज, कहीं पछताना न पड़ जाएआप उन खबरों को भूले तो नहीं होंगे, जिनमें ई-मेल के माध्यम से ठगने की घटनाएं प्रकाश में आई थीं। लेकिन, आने वाले दिनों में ठगी के ऐसे प्रकरण सामने आए, जिनका कारण मोबाइल का इन-बॉक्स रहा हो, जो कोई आश्चर्य नहीं। कारण, जिस तरह के मेल ई-मेल पर मिलते रहे हैं, उसी तरह के संदेश अब मोबाइल पर आने शुरू हो गए हैं।

Saturday, September 12, 2009

पांच फीट की लौकियां


बदनावर जिला धर में आदिवासी कृषक मांगूजी गामड़ के कालेज के सामने स्थित कृषि भूमि में पांच फीट की लौकियां (आल) उपजी हैं। कृषक मांगू गामड़ ने हाईब्रिड बीज बाहर से बुलवाकर बोए थे। अब इन बेलों में पांच फीट लम्बाई की कई लौकियां बढ़ रही हंै। इन्हें बेचने की बजाए बीज के लिए सहेज कर रखा गया है।

Wednesday, September 9, 2009

धन्यवाद, आभार ब्लॉगवाणी

ब्लोग्वानी की टीम का बहूत बहूत धन्यवाद, जो उसने मेरे ब्लॉग को ब्लोग्वानी पर शामिल किया। पुनः धन्यवाद...
पंकज व्यास, रतलाम

Monday, September 7, 2009

अब नहीं सुनाई देते संझा के गीत

-पंकज व्यास
श्राद्ध पक्ष चल रहा है, साथ ही संझा पर्व का वक्त भी। सांझ के वक्त मदमस्त चलती बयारों के बीच अगर आपका मन मयुर हो उठे और मन करे चित्ताकर्षक हाथ से बनाई संझा के दर्शन की, इच्छा हो संझा गीतों को सुनने की, तो आपको मशक्कत करनी पड़ सकती है, क्योंकि आपकी ये चाहत सहज में पूरी नहीं हो सकती।

अब ‘संझा’ के लिए बच्चियों, लड़कियों, युवतियों के पास वक्त नहीं है। उन्हें अब पढ़ाई की टेंशन है, उनका ध्यान अब कॅरियर की ओर है और फिर संझा बनाना, मनाना और संझा के गीत गाना अब पिछड़ेपन की निशानी मानी जाती है। यही कारण है कि शहर की पॉस कॉलोनियों में नहीं, निम्नमध्यमर्गीय कॉलोनियों में वह भी बहुतायात में नहीं कहीं-कहीं रस्म अदायगी के लिए संझा बनाई हुई नहीं, चिपकाई हुई मिलेगी। कहीं आपको गीत सुनाई दे तो आपका नसीब और आपको गोबर द्वारा हाथ से बनाई संझा के दर्शन हो जाएं तो आप भाग्यशाली, सौभाग्यशाली! स्पष्ट है संझा पर्व विलुप्ति के कगार पर खड़ा है।

एक वक्त था जब श्राध्द पक्ष में सांझ ढलने को होती और बालिकाएं, लड़कियां, युवतियां संझा की आरती की तैयारी करने लगतीं, घर की दिवार पर चौकुनाकार में गोबर से लीप कर संझा बनाना शुरू करतीं, उस पर फूल पंखुडियां आदि लगातीं, सजातीं और मोहल्ले भर की सहेलियों को बुलाकर संझा के गीत गातीं, आरती उतारतीं, प्रसाद बांटतीं और फिर दूसरी सहेली के घर जाकर वहां भी इस क्रम को दोहराती। दूसरे दिन फिर से दिवाल के उस स्थान को लीपा जाता, जहां संझा बनाई जाती थी और फिर नई संझा बनातीं और फिर वहीं क्रम चलता… रोज नई संझा बनती…

वक्त बदला, वक्त के साथ-साथ लोगों का नजरिया बदला और गोबर से बनने वाली संझा का स्थान बाजार में मिलने वाले प्रिंटेड संझा के पाने ने ले लिया। संझा के पाने ने रोज-रोज गोबर में हाथ करने की मशक्कत को बचा लिया या यूं कही सृजनात्मकता को गृहण लगायाञ रोज रोज संझा बनाने की अब जरूरत नहीं पड़तीं थी, क्योंकि एक ही पाना रोज काम में आ जाता है। फिर भी लड़कियों, युवतियों, बालिकाओं में संझा के प्रति उत्साह बरकरा रहता। चाहे संझा के पाने ने गोबर द्वारा हाथ से बनाई जाने वाली संझा का स्थान ले लिया हो, लेकिन सांझ ढलते ही संझा के गीत मस्त बयारों के बीच सुनाई देने लग जाते।

स्पष्ट रूप से संझा के दो रूप सामने आए, एक ही मोहल्ले में कहीं हाथ से बनाई गई गोबर की संझा की आरती होती, तो कहीं प्रिंटेड पोस्टररूपी संझा की आरती, लेकिन गीतों दौर बदस्तूर जारी रहता।

फिर बदला वक्त, वक्त के साथ लोगों की सोच बदली। अब अभिभावकों के साथ बच्चों का ध्यान केन्द्रित हुआ केरियर की ओर। बच्चों पर बढ़ा पढ़ाई का दबाव। जाहिर सी बात है, संझा पर्व पर भी पढ़ा इसका प्रभाव। अब लड़कियों, युवतियों, बच्चियों को पढ़ाई की चिंता सताती है। उनके पास वक्त इतना वक्त नहीं है कि संझा के गीता गा लें, इतना टाईम नहीं है कि संझा और कॅरियर दोनों पर भी ध्यान दे लें और संझा के गीत भी याद कर लें।

आज के समय में गोबर से बनी संझा के दर्शन शायद ही किसी के हो, पूरी तरह से बनाई जाने वाली संझा का स्थान रेडिमेड संझा के पाने ने ले लिया है। बीच के दौर में जैसे कहीं गोबर की हाथ से बनाई हुई, तो कहीं रेडीमेड संझा देखने को मिल जाती थी, ठीक ऐसे ही कहीं आज संझा के पोस्टर मिलेंगे, तो कहीं संझा मनाई और बनाई ही नहीं जा रही है।

अगर कहीं पर संझा बनाई जा रही है, और गीत गाने का समय है, तो जल्दी-जल्दी में गीत गा लिए, नहीं तो फटाफट आरती कर ली और फिर अपने काम पर लग गए।

बहुतायात में अब संझा के गीत गली मोहल्लों में नहीं गुंजते हैं, अब बस रस्म अदायगी के लिए संझा की पूजा-आरती होती है, वह भी कम ही जगह पर। हालांकि, गांवों में आज भी कहीं संझा के गीत सुनाई, तो देते हैं, लेकिन वहां भी वो उत्साह, उमंग देखने को नहीं मिलता, जो कभी मिलता था।

आज के समय में स्पष्ट रूप से गोबर की बनाई हुई संझा का स्थान बाजार में मिलने वाले रेडिमेड प्रिंटेड संझा के पाने ने ले लिया है। शायद ही कोई को जिसके पास गोबर द्वारा हाथ से बनाई गई संझा का छाया चित्र भी हो। होगा कहां से संझा का स्वरूप बदल गया है।

अभी वो दौर चल रहा है, जिसमें हाथ से बनाई गई संझा विलुप्त सी हो गई है, अब चित्ताकर्षक संझा देखने को नहीं मिलती। संझा के गीत शाम के समय बहुतायात में सुनाई नहीं देते, कुछ जगहों पर ही संझा गीत की रस्म अदायगी की जाती है। पढ़ाई और केरियर का टेंशन जो रहता है।

अगर यही दौर बदस्तुर जारी रहा, तो वह दिन दूर नहीं, जब संझा पर्व इतिहास की बात हो जाएगा। जैसे हाथ से बनाई हुई चित्ताकर्षक संझा के दर्शन दुर्लभ हो गए है, जैसे संझा गीत बहुतायात में सुनाई नहीं देते, ठीक वैसे ही वह दौर भी आ जाए तो कोई आश्चर्य नहीं हो, जब कहीं-कहीं संझा के पाने तो दिखें, लेकिन गीत गाने का थोड़ा भी समय न हो। भविष्य में आरती-पूजन की रस्म अदायगी भी हो जाए, तो बड़ी बात होगी।

पॉश कॉलोनियों से संझा हुई नदारद

अब रस्म अदायगी के लिए संझा बनाई (माफ कीजिए चिपकाई) जाती है, तो निम्न व मध्यमवर्गीय कही जाने वाली कॉलोनियों में। पॉश कॉलोनियों से संझा नदारद हो गई है। साफ है, संझा के गीत गाना, बनाना, मनाना पिछड़ेपन की निशानी मानी जाती है। सभ्रांत कहे जाने वाली परिवारों की लड़कियों के पास न तो वक्त है, न संझा बनाने, मनाने और गीत गाने की ईच्छा।

संझा गीत

संजा जीम ले, चुठ ले, थने जिमऊं मैं सारी रात, चट्टक चांदी सी रात, फूला भरी रे परात, एक फूलो टूट ग्या, संजा माता रूठ गी…

काजल टीकी लो भई, काजल टिकी लो,, काजल तिटकी लइने म्हारी संजा बाई ने दो, संजा बाई को सासरों, सांगा में, पद्म पदानी बड़ी अजमेर…

मैं कोट चड़ा चढ़ देखूं म्हारो कौन सो वीरो आयो, चांद-सूरज वीरो आयो, घोड़ा पे बैठी ने आयो…

संजा वो की, सोली वो…. आदि गीत शाम के वक्त सुनाई देने शुरू हो गए हैं।

-पंकज व्यास

Monday, July 13, 2009

अंहकार ही मनुष्य के े पतन का कारण-श्री राजरत्नविजयजी

अंहकार ही मनुष्य के े पतन का कारण-श्री राजरत्नविजयजी
.>> आशीष पोरवाल
रतलाम। मुनिराज राजरत्नविजयजी म.सा. ने धर्मसभा में कहा कि अंहकार मनुष्य को पतन के े गर्त में ले जाता है। जलन, द्वेष, अहम, राग-रस, अंहकार के आभूषण है।
आपने कहा कि अंहकारी का अच्छा बनने में खुश नहीं,अच्छा दिखने में खुश्। स्वार्थसिद्धी के लिए परमात्मा की आज्ञा का उल्लंघन होता है। अहंकार वहां अहम नदारद है। अहंकार क कारण नाक का सवाल उठाकर संपूर्ण (अरिहंत) जगत में संघर्ष व्याप्त है। धर्मसभा में मैत्रीकुंभ (नवकार कलश) को श्रद्धालुओं ने अभिमंत्रित वासक्षेप से भर दिया। पश्चात १२ नवकार का जाप किया गया। यह कलश नवकार के जाप के े लिए धर्मालुजन घर-घर ले जाएंगे, वहां सामूहिक जाप द्वारा लाखों-करोड़ों नवकार का जाप होगा। संघ के े पारस भण्डारी ने बताया कि मैत्री कुंभ के लाभार्थी समीरमल ललवानी परिवार एवं मैत्रीकुंभ घर के े लिए चांदमल ज्ञानचंदजी सुराणा परिवार है।

Monday, March 23, 2009

english-4 all, come please

english-4 all par आज से मैनें इंग्लिश सीखने सम्बन्धी पोस्ट लिखनी स्टार्ट कर दी है। काफी दिन से लिखने की इच्छा थी, लेकिन कुछ वयस्तता की वजह से लिखना स्टार्ट नही हो पा रहा था।

आज से पोस्ट स्टार्ट की है। उम्मीद है आपके सहयोग से निरंतरता बनी रहेंगी।


please click english-4all.blogspot.com

Thursday, February 26, 2009

इंग्लिश क्लास कमिंग सून....

इंग्लिश क्लास कमिंग सून....
लीजिये, आपकी खिदमत में हाजिर है english-4all. आपका वेल-कम। शीघ्र यहाँ आप-हम शुरू करेंगें ऑनलाइन इंग्लिश क्लास। क्या आप है तैयार ? आप भी रहें रेडी और अपने दोस्तों को भी कर लें तैयार।

Tuesday, February 24, 2009

व्यवस्था में कमी पर लिखेंगें तो भी क्या मान हानि आड़े आएँगी

व्यवस्था में कमी पर लिखेंगें तो भी क्या मान हानि आड़े आएँगी

किसी का मन दुखाना हमारा मकसद न हो, किसी के सम्मान को हनी पहूचना हमारा इरादा न हो, और व्यवस्था की कमी को इंगित करना हमारा लक्ष्य हो तो क्या कोई मान हानि लगेंगी। व्यवस्था में कमी पर लिखेंगें तो भी क्या मान हानि आड़े आएँगी? ये प्रश्न मेरे जेहन में उठा रहा है और मुझे परेशां कर रहा हैं।
इस मामले में क्या?

Friday, February 20, 2009

इसलिये यह ब्लॉग बनाया है

मेरा ब्लॉग आप-हम में न जाने क्या हो गया है, उसकी पोस्ट ब्लोग्वानी, चिट्ठाजगत पर पुब्लिश नहीं होती। काफी मशक्कत की लेकिन कुछ नहीं हुआ।

अंततः यहाँ ब्लॉग बनाना पड़ा। अब यहाँ मिलेंगे। हालाँकि, मैं कोशिश कर रहा हूँ, अगर सब कुछ ठीकठाक हो गया तो वहां भी मिलेंगें। टेक्नीकल बंधुयों से गुजारिश है- कोई मदद हो सके तो करें।


aapka pankaj vyas ratlam